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अपने होने पे मुझको यक़ीं आ गया.
पिघले नीलम सा बहता हुआ ये समां
नीली नीली सी खमोशियां
ना कहीं है ज़मीं
ना कहीं आसमां
सरसराती हुई टहनियां, पत्तियां
कह रही हैं कि बस इक तुम हो यहां
सिर्फ़ मैं हूं मेरी सांसे हैं और मेरी धडकनें
ऐसी गहराइयां
ऐसी तनहाइयां
और मैं सिर्फ़ मैं
अपने होने पे मुझको यक़ीं आ गया....
By-
Er.
Rohit Kushwah
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