January 24, 2008
Lyrics: Ahmed Faraz
Singer: Ghulam Ali
Singer: Ghulam Ali
ऐसे चुप
है कि ये मंज़िल
भी कड़ी हो जैसे,
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे।
तेरा मिलना भी जुदाई की घड़ी हो जैसे।
अपने ही
साये से हर गाम लरज़ जाता हूँ,
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे।
रास्ते में कोई दीवार खड़ी हो जैसे।
कितने नादाँ
हैं तेरे भूलने वाले कि तुझे
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे।
याद करने के लिए उम्र पड़ी हो जैसे।
मंज़िलें दूर
भी हैं, मंज़िलें नज़दीक
भी हैं,
अपने ही पाँवों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे।
अपने ही पाँवों में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे।
आज दिल
खोल के रोए हैं तो यों खुश हैं ‘फ़राज़’
चंद लमहों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे।
चंद लमहों की ये राहत भी बड़ी हो जैसे।
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गाम = Step
लरज़ = Shake
लरज़ = Shake
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