"पुरानी झील का पानी, हवा से इत्तेफाक रख रही थी"

"
पुरानी झील का पानी, हवा से इत्तेफाक रख रही थी ,
कुछ तो हुवा था शायद , मौसम अपनी बरसात रख रही थी

झूम उठा था सारा शमा ,पेड़ो क़ी खवाहिशे कुछ जगी सी थी
बादल बेक़रार बरसने को , पानी भी वो अहसास रख रही थी

हसरते बुलाती रही बाहे फैलाये , मदहोश होने क़ी आरजू रही
तरसे जिसके लिए हर लम्हा , आखों में वो प्यास रख रही थी

होठो क़ी लडखडाहट में , कुछ तमन्नाए दबी हुवी सी लगी
बाहों में आने को बेकरार , अपनी सासें मुझ पर रख रही थी

लफ्जों क़ी जुस्तजू रही बातो में , चेहरे भी उलझे हुवे से रहे
पलकों में यु गुमराह किये हुवे , हम पे बराबर नज़र रख रही थी

ठहर गया होता शायद लम्हा , वक़्त भी इस इंतज़ार में था
इतनी ख़ामोशी सी फरमाइश , बरसो क़ी मुलाकात रख रही थी .!!!!
"

Comments