हर शाम को मैं टूटे दिलों की दवा पिलाता हू, दे दे कर आवाज़ सबको अपने पास बुलाता हू॥



हर शाम को मैं टूटे दिलों की दवा पिलाता हू,
दे दे कर आवाज़ सबको अपने पास बुलाता हू॥


जिसे प्यार में धोका मिला वो भी आओ
जो प्यार् पा ना सका वो भी आओ ||


मैं हिला-हिला के पैमानों में डवा पिलाता हू,
हर दिल के मरीज़ को जीना सिखाता हू॥
                 ''जीतेश अत्री''


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