फिर ये कश्ती, ये पतवार किसके लिए

जीत किसके लिए, हार किसके लिए
ज़िंदगीभर ये तकरार किसके लिए

जो भी आया है वो जायेगा एक दिन
फिर ये इतना अहंकार किसके लिए

तोड़ डाले तअल्लुक़ के बंधन तो फिर
जन्मदिन पर ये उपहार किसके लिए

पूछते हैं दियों से अँधेरे घने
रोशनी का पुरस्कार किसके लिए

ज़िंदगी तेरा कोई नहीं है तो फिर
कर रही है तू सिंगार किसके लिए

तेरा मक़सद है मुझको डुबोना अगर
फिर ये कश्ती, ये पतवार किसके लिए

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