हाँ मैं जिंदा हूँ मगर होश में आऊँ कैसे।

ऐ दोस्त जिंदगी को सजाऊं कैसे,
सख्त हालात हैं,हर बात बताऊं कैसे।

जा चुके थे तुम अरमान लिये दूर बहुत,
मैं सोचता ही रहा तुमको बुलाऊं कैसे।

चला मैं चार कदम और बिखर ही गया,
मेरा वजूद चूर-चूर उठाऊं कैसे।

पिया है मैंने जहर वक्त के होठों से ,
हाँ मैं जिंदा हूँ मगर होश में आऊँ कैसे।

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