धड़कन पर बैठी वो जान-ए-जिगर नज़र आएगी!

गर देखने का अंदाज़ बदलो तो, निगाह-ए-नाज़ मुमताज़ नज़र आएगी,
ताज़ से निगाहें फेरो तो, दिल में दस्तक देती वो सरताज़ नज़र आएगी!

मुद्दतों बाद बे-नक़ाब चाँद आज निकला है मोहब्बत-ए-सफ़र में,
जोश-ए-जुनून में ना कर दे फिर से जान-निसार महबूब-ए-हमसफ़र पर!

खुश मिज़ाज़ मौसम का काफ़िला चल पड़ा है मंज़िल-ए-इश्क़ पर,
महक-ए-गुलशन की छाने लगी है हर राह-गुज़र के दिल-ओ-दिमाग़ पर!

क्यूँ ढूँढते हो उसे शाम-ओ-शहर दीवाना बन रफ़्ता-रफ़्ता गलियों में,
दिल का दरवाज़ा खोल, धड़कन पर बैठी वो जान-ए-जिगर नज़र आएगी!

Comments