शायद ज़िंदगी बदल रही है!!

शायद ज़िंदगी बदल रही है!!

जब
मैं छोटा था,
शायद दुनिया
बहुत बड़ी हुआ करती
थी..
मुझे याद है मेरे घर से"स्कूल"
तक

का वो रास्ता,
क्या क्या नहीं था वहां,
चाट
के ठेले,

जलेबी की दुकान,

बर्फ के गोले,
सब
कुछ,
अब वहां"मोबाइल शॉप",

"विडियो पार्लर"
हैं,
फिर भी सब सूना
है..
शायद अब दुनिया सिमट रही है...
.
.
.
जब मैं छोटा
था,
शायद शामें बहुत लम्बी हुआ करती
थीं...
मैं
हाथ में पतंग की डोर पकड़े,

घंटों उड़ा करता था,

वो लम्बी"साइकिल रेस",
वो बचपन के खेल,

वो हर शाम थक के चूर हो जाना,
अब शाम नहीं होती,
दिन
ढलता है
और सीधे रात हो जाती है

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